Saturday, October 12, 2019

शिवभूषण 2

शिवभूषणावरील पहिल्या लेखात आपण शिववंशवर्णन व काही छंद बघितले
आज दुसर्‍या लेखात आपण पुढले आणखीन काही छंद बघू.















आजौ भूतनाथ मुंडमाल लेत हरषत भूतन आहार लेत अजहु उछाह है
भूषन भनत आज काटे करवालनके कारे कुंजरन परि कठिन कराह है
सिंह सिवराज सलहेरि के समीप ऐसो कीन्हो कतलाम दिल्लीदल को सिपाह है
नदी रनमंडल रुहेलन रुधिर आजौ आजौ रबिमंडल रुहेलन की राह है ||13||

इंद्र जिमि जंभ पर बाडव सुअंभ पर रावण सदंभ पर रघुकुल राज है |
पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर ज्यौं सहसबाह पर राम द्विजराज है |
दावा दृमदंड पर चीता मृगझुंड पर भूषन वितुंड पर जैसे मृगराज है |
तेय तमअंस पर कान्ह जिमि कंस पर त्यौं म्लेंच्छबंस पर सेर सिवराज है ||14||

शिवभूषण 1


शिवभूषण



राजत है दिनराज को बंस अवनि-अवतंस | जामें पुनि पुनि अवतरे कंसमथन प्रभु-अंस ||1||

महाबीर ता बंस में भयौ एक अवनीस  |  लियौ बिरद सीसोदियौ दियौ ईस को सीस ||2||

जातें सरजा बिरद भी सोहत सिंह-समान  |  रन-भ्वै-सिला सु भ्वैसिला आयुष्मान खुमान ||3||

दसरथजू के राम भए वसुदेव के गोपाल  |   सो ही प्रकटे स्याहिकै श्री शिवरज भुवाल ||4||

दच्छिन के सब दुग्ग जिति दुग्ग सहार बिलास  |   सिव-सेवक सिव गढपति कियौ रायगढ बास ||5||

देसनि देसनि तें गुनी आवत जाचन ताहि  |   तिनमें आयौ एक कबि भूषन कहियतु जाहि ||6||
द्विज कनौज कुल कस्यपी रतनाकर सुत धीर  |   बसत त्रिविक्रमपुर सदा तरनी तनुजा तीर ||7||
बीर बीरबर से जहॉं उपजे कबि अरु भूप  |   देव बिहारीस्वर जहॉं बिस्वेस्वर तद्रूप ||8||
कुल सुलंक चित्रकूटपति साहस सील समुद्र  |   कवि भूसन पदवी दई हृदयराम सुत रुद्रॅ  ||9||
सुकबिनहू की कछु कृपा समुझै कबिनै को पंथ | भूषन भूषनमय करत सिवभूषन सुभ ग्रंथ ||10||


साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है |
भूसन भनत नाद बिहद नगारन के नदि नद मद गैबरन के रलत है |
ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल गजन की ठैल पैल सैल उसलत है |
तारा सों तरनि धूरि धारा में लगत जिमि थारा पर पारा पारावार यौं हलत है ||11||


प्रेतिनी पिसाचरू निसाचर निसाचरिहू मिलि मिलि आपसमें गावत बधाई है
भैरो भूत प्रेत भूरि भूधर भयंकर से जुत्थ जुत्थ जोगिनी जमाति जुरि आइ है
किलकि किलकि कै कुतुहल करति कालि डिम डिम डमरू दिगंबर बजाई है
सिवा पूछै सिव सों समाजु आजु कहॉं चली काहूपै सिवा नरेस भृकुटि चढाई है ||12||